सृजनात्मक पुस्तकें समाज को एक दिशा देने का काम करती हैं। बिग बाजार सिर्फ और सिर्फ उपभोक्तावादी समाज को बढ़ावा दे रहा है। अगर हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां खुश और शांत चित्त रहें, तो हर बिग बाजार में कम से कम एक किताबों की एक दुकान जरूर होनी चाहिए अन्यथा समाज केवल मशीन रूपी इन्सानों से भर जाएगा।
मुझे अपने पिता के एक दोस्त, राजकुमार, जो ओशो के सन्यासी हो गए। उन्होंने घर छोड़ दिया और जबलपुर, ओशो में आश्रम में ओशो साहित्य बेचना शुरू कर दिया। जब वह अपने गाँव आए, तो उनके पिता ने मेरे पिता से कहा कि आप उन्हें समझाएं कि यह दुकान पर बैठे जो कि इसे जीवन के बारे में कुछ पता चले। तब राजकुमार ने कहा कि आप जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते, जो कि आप ओशो, चैखोव, टॉलस्टॉय के बारे में कुछ नहीं जानते हैं।
उनके पिता ने कहा, जस जी मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि ये किसी आदमी का नाम ले रहा है या किसी ओर का?
मेरे पास एक कुलीग राजु विश्वकर्मा है जो मैकेनिकल डिग्री करने के लिए बुंदेलखंड गया था। उनकी रुचि साहित्य में थी। उन्होंने पुस्तकालय से अमृता प्रीतम की आत्मकथा रसीदी टिकट लेकर पढा।लिया। किसी कारण से वह बठिंडा आ डिग्री कालेज आ गया। पर वहाँ के पुस्तकालय में साहित्य की एक भी पुस्तक नहीं मिली, हालाँकि, बठिंडा साहित्यिक रूप से बहुत धनी शहर है।
पाश ने एक बात कही है, उनकी कविता
"मैं विदा लेता हूंँ मेरी दोस्त" में ,
, "प्यार करने और जीना उन्हें कभी ना आएगा जिन्हें जिंदगी ने बनिया बना दिया ।"
इसका मतलब यह नहीं है कि पाश एक जाति के बारे में बात कर रहा है, वह बात कर रहा है कि सिर्फ पैसा बनाने से खुशी नहीं मिलती , प्यार और जीवन इससे बहुत आगे की बात है।
जंग बहादुर गोयल ने अपनी पुस्तक विश्व साहित्य के शाहकार नावल में लिखा है कि वे एक तकनीकी विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में गए और पाया कि वँहा लगभग 50,000 किताबें थीं। उन्होंने स्वाभाविक रूप से पूछा, यहां गोर्की, टॉल्स्टॉय या मुंशी प्रेमचंद की किताबें हैं?
फिर यह पता चला कि यँहा ऐसी कोई किताब नहीं थी। तो सवाल उठता है कि हम किस तरह के इंजीनियरों का पैदा कर रहे हैं?
कलकत्ता छह नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साथ दुनिया का सबसे बड़ा नोबेल पुरस्कार विजेता शहर बन गया है। बंगाल में एक खास बात है, चाहे वँहा इंजीनियर हो या डॉक्टर, एक विषय कला की आवश्यकता है। यही कारण है कि वे कला से प्यार करते हैं।वँहा चाय के खोखे में एक लेखक की तस्वीर ज़रूर होगी।
मैं यह नहीं कहता कि हम बिल्कुल कोरे हैं, लेकिन अगर हम अपनी जड़ों से जुडे रहना है तो किताबों से जुड़ना होगा।
इसलिए बच्चों के सामने बैठकर किताबें पढ़ें, ताकि वे भी सीख सकें। अगर हम चाहते हैं हमारे बच्चे पैसा बनाने की मशीन न बने, बल्कि इंसान बनें तो उन्हें ये सिखाना होगा, कि जीने के लिए पैसा कमाना है, ना कि पैसा कमाने के लिए जीना है। ये एक बहुत बडा बुनियादी भेद है।
मैं भी जब कभी मैं मोबाइल में खो जाता हूं, तो किताबों का जादू मुझे बाहर खींच लाता है।
आपका धन्यवाद
रजनीश जस
26.10.2019
मुझे अपने पिता के एक दोस्त, राजकुमार, जो ओशो के सन्यासी हो गए। उन्होंने घर छोड़ दिया और जबलपुर, ओशो में आश्रम में ओशो साहित्य बेचना शुरू कर दिया। जब वह अपने गाँव आए, तो उनके पिता ने मेरे पिता से कहा कि आप उन्हें समझाएं कि यह दुकान पर बैठे जो कि इसे जीवन के बारे में कुछ पता चले। तब राजकुमार ने कहा कि आप जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते, जो कि आप ओशो, चैखोव, टॉलस्टॉय के बारे में कुछ नहीं जानते हैं।
उनके पिता ने कहा, जस जी मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि ये किसी आदमी का नाम ले रहा है या किसी ओर का?
मेरे पास एक कुलीग राजु विश्वकर्मा है जो मैकेनिकल डिग्री करने के लिए बुंदेलखंड गया था। उनकी रुचि साहित्य में थी। उन्होंने पुस्तकालय से अमृता प्रीतम की आत्मकथा रसीदी टिकट लेकर पढा।लिया। किसी कारण से वह बठिंडा आ डिग्री कालेज आ गया। पर वहाँ के पुस्तकालय में साहित्य की एक भी पुस्तक नहीं मिली, हालाँकि, बठिंडा साहित्यिक रूप से बहुत धनी शहर है।
पाश ने एक बात कही है, उनकी कविता
"मैं विदा लेता हूंँ मेरी दोस्त" में ,
, "प्यार करने और जीना उन्हें कभी ना आएगा जिन्हें जिंदगी ने बनिया बना दिया ।"
इसका मतलब यह नहीं है कि पाश एक जाति के बारे में बात कर रहा है, वह बात कर रहा है कि सिर्फ पैसा बनाने से खुशी नहीं मिलती , प्यार और जीवन इससे बहुत आगे की बात है।
जंग बहादुर गोयल ने अपनी पुस्तक विश्व साहित्य के शाहकार नावल में लिखा है कि वे एक तकनीकी विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में गए और पाया कि वँहा लगभग 50,000 किताबें थीं। उन्होंने स्वाभाविक रूप से पूछा, यहां गोर्की, टॉल्स्टॉय या मुंशी प्रेमचंद की किताबें हैं?
फिर यह पता चला कि यँहा ऐसी कोई किताब नहीं थी। तो सवाल उठता है कि हम किस तरह के इंजीनियरों का पैदा कर रहे हैं?
कलकत्ता छह नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साथ दुनिया का सबसे बड़ा नोबेल पुरस्कार विजेता शहर बन गया है। बंगाल में एक खास बात है, चाहे वँहा इंजीनियर हो या डॉक्टर, एक विषय कला की आवश्यकता है। यही कारण है कि वे कला से प्यार करते हैं।वँहा चाय के खोखे में एक लेखक की तस्वीर ज़रूर होगी।
मैं यह नहीं कहता कि हम बिल्कुल कोरे हैं, लेकिन अगर हम अपनी जड़ों से जुडे रहना है तो किताबों से जुड़ना होगा।
इसलिए बच्चों के सामने बैठकर किताबें पढ़ें, ताकि वे भी सीख सकें। अगर हम चाहते हैं हमारे बच्चे पैसा बनाने की मशीन न बने, बल्कि इंसान बनें तो उन्हें ये सिखाना होगा, कि जीने के लिए पैसा कमाना है, ना कि पैसा कमाने के लिए जीना है। ये एक बहुत बडा बुनियादी भेद है।
मैं भी जब कभी मैं मोबाइल में खो जाता हूं, तो किताबों का जादू मुझे बाहर खींच लाता है।
आपका धन्यवाद
रजनीश जस
26.10.2019