Sunday, May 10, 2020

Sunday Diaries 10.05.2020

 रविवार है तो किस्से, कहानियां दोस्तों के साथ गपशप चल रही है। इस लॉक डाउन के दौरान बहुत सारी नई चीजें अनुभव की है जो शेयर कर रहा हूं जैसे कि ज़रूरतों और ख्वाहिशों के बीच जो बारीक की लकीर है उसको देखा। ये अलग बात है  किसी की ज़रूरत सूखी रोटी है, और ख्वाईश है  दूसरे की देसी घी की चुपडी रोटी। देखा जाए तो घर के राशन का खर्चा बहुत ही कम आता है फिर बाकी खर्चे कहां से होते हैं? वो खर्चे हैं मकान की किश्त, कार की किश्त।
  चलिए चलते हैं घुमक्कड़ी पर वापस।  मेरा गांव पुरहीरां से होशियारपुर लगभग 6 किलोमीटर है।

 मैं , मेरी बहन , मेरी बुआ, मेरी बुआ की बेटी, हम चारों गाँव से 6 किलोमीटर पैदल चलकर शहर गये।  पता चला था कि उनके घर में दुबई से चॉकलेट आई हुईं हैं। उनके घर गए तो वहां कोई चॉकलेट नहीं मिली। वापस आने के लिए सिर्फ किराया था। तो फिर आटो में बैठकर हम वापिस आ गये। अब इस बात को याद करते हैं तो हंसी आती है। ये बात हमने घर पर नहीं बताई क्योंकि घर पर बताते तो खूब पिटाई होती।


 मेरे घर के साथ वाले घर कोई नहीं रह रहा और वहां छत्त पर कम से कम 25- 30  गमले हैं जिनमें पौधे लगे हुए हैं। मेरी पत्नी  ने कहा कि अगर हम पानी दें तो पौधे सूखने से बच जाएँगे।पूरे लाकडाऊन के दौरान उनको पानी दिया सारे के सारे हरे भरे हो गए हैं।
 एक दिन घर पर दो लड़के आए हो वह कह रहे कि उन्हें भूख लगी हुई है। उनको  खाना खिलाया। फिर उन्होंने कहा कि प्यास लगी हुई है। हम  कोरोना के चक्कर में डर रहे थे। फिर उन्हें बोतल में पानी दिया वो दोनों दो दो  बोतल पानी पी गये। हमने पूछा तुम्हारे माता पिता  कहां हैं ? वो बताए कि वो काम के लिए  कहीं बाहर गए थे लाकडाऊन में वँही फस गये। हमने कहा कि तुम रोज़ खाना खाने आ जाया करो।

 अभी मैं देख रहा था कि 85 साल की औरत है जो एक रूपये में इडली दे रही है जो लोग राहगीर  अपने अपने घरों को चल रहे हैं।

इस लाकडॉउन के दौरान जो लोग घर पर बैठे हैं और अपनी ऊर्जा को सकारात्मक नहीं लगा रहे हैं उनकी ऊर्जा नकारात्मकता की तरफ बढ़ रही है ।अपने अंदर  बिमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक शक्ति को पैदा करें।  विटामिन सी, तुलसी और डाक्टरों की सलाह पर अमल करें।  कुछ ना सही तो खूब सारी तालियां बजाकर हंसते भी रहे इससे भी हमारे अंदर बीमारियों को लड़ने की शक्ति पैदा होती है।

 मैं ओशो को सुन रहा था । एक कहानी है।
 एक बार एक फकीर शहर के बाहर रह रहा था। वो बैठा था तो उसके पास से काला से साया गुज़रा।  उसने पूछा तुम कौन हो?  उसने कहा मैं एक महांमारी हूँ। फकीर ने कहा क्या इरादा है? उसने कहा लगभग 500 लोग इस महामारी से मारे जाएंगे और वह शहर में चली गई । फकीर को पता चला कि इस महामारी से लगभग 5000 लोग मर चुके हैं। जो फिर से काला साया उसके पास से गुजरा हो तो उसने कहा कि तुमने तो कहा था मैं 500 लोगों को ही मारूँगी पर तुमने तो  5000  लोग मार दिए। वो कैसे मर गए?  तो  महामारी ने कहा कि मैनें तो 500 ही मारे, बाकी 4500  तो डर के कारण ही मर गए।

 तो बीमारी से बड़ा बीमारी का डर है। इसका मतलब यह नहीं कि आप एहतियात  ना बरतें, पर मन में इतना भी डर पैदा ना करें कि आपके स्वास्थ्य को हानि पहुंच जाए।
इन दिनों दो  दुखद घटनाएं हुई विशाखापट्टनम में गैस की लीकेज से  और  औरंगाबाद में मजदूरों का मर जाना। दोनों ही बहुत ही दुखद हैं।

  हम फिर भी पूरे विश्व के मंगल का कामना करते हैं और कहते हैं कि हर प्राणी हर आदमी यहां सुरक्षित रहे।
फिर मिलूंगा इक नये किस्से के साथ। तब तक विदा लेता हूँ।
आपका अपना
रजनीश जस
 रूद्रपुर ,उत्तराखंड
#sundaydiaries
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Sunday, May 3, 2020

#sunday_diaries_03.05.2020

 आज रविवार है तो किस्से कहानियां ही चल रहे हैं साइकिलिंग तो अब एक सपना हो गया है।
 संजीव जी ने ऑनलाइन मीटिंग अरेंज की और फिर मिल गए कुछ दोस्त। राजेश जी हरियाणा में अपने घर पर है, पंकज दिल्ली में है, शिवशांत, संजीव  मैं रूद्रपुर ही।  पंकज ने बताया कि दिल्ली में बेशक रेड जोन हैपर  सब्जी वाला आता है , सब्जी खरीदते हैं उसकी दाढ़ी भी काफी बढ़ चुकी है, ऐसा ही राजेश सर का हाल भी है। राजेश जी के घर काफी पेड़ हैं। घर के इर्द-गिर्द बहुत सारी खुली जगह होने के कारण वो स्वच्छ हवा का आनंद ले रहे हैं। संजीव जी भी पंतनगर यूनिवर्सिटी नहीं गए है। शिवशांत भी घर पर है।
 कोरोना को लेकर बातचीत हुई, संजीव जी ने बताया कि उन्होंने बीबीसी  पर पढा कि एक पत्रकार के कहा कि उसने पिछले 10 साल से हाथ साबुन से नहीं धोए ।इस बात को लेकर हंगामा हुआ।
 इसलिए भी पश्चिमी देशों में  कोरोना ज्यादा फैला। इटली मे जो लोग शापिंग माल में जाते थे वो जूते घर के अंदर भी ले आते थे, ये भी एक कारण रहा।

भारत में अगर हम साऊथ की तरफ जाते हैं तो वहां देखते हैं कि वहां पर जो लोग हैं उनके घर के बाहर  घड़ा रखा होता है। जब वह बाहर से आते हैं अपने हाथ पैर धोकर और फिर घर में आते है।  मेरे दोस्त इटली से बता रहा था कि उनको फैक्ट्री में यह बताया जाता है कि साबुन से हाथ कैसे हाथ धोते हैं? पर ये परंपरा भारत में पहले से ही है। हम मिलकर दुआ करते है पूरे विश्व में कोरोना का कहर कम हो, चाहे वो हाथ धोते हो या नहीं।

 इंटरनेट पर फायदा तो है कि सब दोस्तों से बातचीत हो रही है और सब कुशल मंगल है।
 रुद्रपुर में घरों के बाहर आम पेड़ लगे हुए हैं ।जिन पर कच्चे आम लग गये  हैं अब गर्मी जो आ गयी है ।




 एक वीडियो में देख रहा था बहुत अच्छी  कहानी है ।
एक लड़का किसी मल्टीस्टोर से कुछ टीके लगाने वाली सिरेंज और  नैपकिन लेकर आ रहा होता है। तो उस रास्ते में एक औरत मिलती है। वो औरत कहती है कि उसे शुगर है तो इंसुलिन लेनी है तो उसको यह सिरेंज जरूरी चाहिए। वो लड़का मना कर देता है। वो भागी भागी स्टोर पर   जाती है । वो  बंद हो चुका होता है। उसको चलाने वाला  बताता है कि एक लड़काअभी अभी सारी सिरेंज ले गया है। वो जब वापिस आती है तो देखती है सड़क पर वही लड़का सिरेंज बेच रहा   होता है। वो जब दाम पूछती तो वो  $50 बताता है , हालांकि वह  $15 की है। उसको कहती है कि यह तो बहुत गलत बात है । लड़का कहता है यही बिजनेस है , कोरोना के चक्कर में उसको पैसे कमाने हैं । औरत अपनी जेब से डॉलर निकालती है तो $40 इकट्ठे होते हैं। वो लड़का मना करता है।  तो फिर वह अपने परस् से सिक्के  देखती है तो वह भी $7 हो पाते हैं। अभी भी $3 कम के कारण लड़का ना में सिर हिलाता है। वो औरत अपनी पिछली जेब में देखती है तो बड़ी मुश्किल से $3 मिलते हैं। वो उस लड़के को दे देती है और वहां से सिरेंज लेकर चली जाती है। तुरंत लड़के के पास ही फोन आता है कि उसकी मां बीमार है तो वह सारी दुकान समेटकर घर की तरफ भागता है । वो घर जाकर  दिखता है वहां उसकी माँ बिस्तर पर बिमार पड़ी है। उसकी मां को शूगर है।  उसको भी इंसुलिन की जरूरत पड़ी पर घर में सिरिंज खत्म हो गई थी। वह इर्द-गिर्द  स्टोर पर घूमी पर वहाँ नहीं मिली ।उसने अपने दोस्तों से भी बात की पर किसी ने कोई हामी नहीं भरी। वह लड़का कहता है कि मां मेरे पास तो सिरेंज थी पर अभी अभी मैं वह बेच कर आ रह हूँ। वह मार्केट जाने लगता है तो उसकी  माँ उसको रोक देती है। वो कहती है कि मेरे पास ही बैठ जा । वह बहुत परेशान होते हो जाता है।

 पर उसी वक्त एक औरत आती है उसके हाथ में सिरिंज होती है। पर इत्तेफाक यही है कि वही औरत है जिसको उसने $50 में वह $15 वाली सिरेंज बेची  थी।  जैसे ही वो लड़का उसको देखता है तो कहता है आप यँहा?  उसकी माँ पूछती कि आप दोनों एक दूसरे को जानते हो? तो वो औरत कहती है ये  बाद की बात है पहले तुम पहले इंसुलिन लो, फिर हम बाद में बात करते हैं। लड़का जब बढ़कर उसके हाथ से वह सिरेंज लेने लगता है तो पूछता कितने पैसे? वो कहती है कुछ नहीं। वो कहती है जब कोई टरेशान होकर आपसे मदद मांगे तो सोचें कभी आप भी उसकी जगह पर हो सकते हैं।
वह लड़का फिर  शर्मिंदा होकर उससे सिरिंज ले लेता है। इस तरह इंसुलिन उसकी मां को मिल जाती है।
 इसके बाद वही लड़का उसी जगह पर खड़े होकर फ्री सिरिंज और नैपकिन बेच रहा होता है। एक लड़की आती है तो उस उससे जब मैं फ्री में नैपकिन देता है तो लड़की पूछती है  कितने डॉलर तेरा मुफ्त में ले जाओ? वो लड़की पूछती है पर वो कहता है ले जाओ। लड़की नैपकिन लेकर कहती है ,गॉड ब्लेस यू। लड़का भी उसको कहता है  गॉड ब्लेस यू टू । तो पास में खड़ी वही औरत देखकर उसको मुस्कुरा रही होती है।

 इस लॉक डाउन के दौरान बहुत सारे लोग हैं जो अपना बिजनेस चमकाने में लगे हुए हैं पर साथ में कुछ नहीं जाएगा , एक गीत है ना सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा।
 दुनिया भर में अगर सिख कम्युनिटी को देखा जाए तो वह उन्होंने हर जगह लंगर लगा रहे हैं वो भी पूरा  सोशल डिस्टेंस मेंटेन करते हुए ।हमारी ही कंपनी में एक लड़का देवेंद्र है जिसके घर पर हर रोज गुरुद्वारे से 10 किलो आटा आता है तो उसकी माताजी रोटियां बना देती हैं और सारी रोटियां गुरुद्वारे में चली जाती हैं ।
लंगर की परंपरा गुरु नानक देव जी की चलाई हुई है । जो कि घर से निकले थे जो उनके पिता ही ने बोला था कि ₹20 ले लो और एक सच्चा सौदा करके आओ। वो  घर से शहर की तरफ जा रहे थे तो रास्ते  साधु मिले तो उन्होंने ₹20 का उनको खाना खिला दिया। वहीं  लंगर की प्रथा शुरू हुई है और आज दुनिया भर में लोग लंगर बांट रहे हैं। ऐसे बहुत सारे काम है जो हो रहे हैं यह जिनकी हमें बातचीत करनी चाहिए अपने बच्चों को बताना चाहिए कि हर चीज़ पैसे से नहीं, मुफ्त में भी मिलती है, पर उस मुफ्त के पीछे कौन सी परंपरा है, किसने शुरू की थी, हम तक कैसे पहुंची है उनको बताना भी बहुत जरूरी है।

 शिव शाम में मई दिवस के मजदूरों के ऊपर एक फौजी अच्छी वीडियो बनाई है कि 1 मई को याद घंटे की शिफ्ट के पीछे शिकागो में जब 16 से 18 घंटे लोगों को काम लिया जाता था तो उन लोगों ने जब विद्रोह किया तो पुलिस ने उनके ऊपर गोलियां दागी ।उनमें से 4 लोगों को फांसी दी गई। पर जब फांसी दी जा रही थी तो उन्होंने बोला कि आप हमारी आवाज़ को बंद अब आ नहीं सकते तो वहां से जब यह पूरे विश्व भर में विद्रोह हुआ वहां विद्रोह हुआ तो यह शिफ्ट 16 घंटे से घटकर 8 घंटे पर आ गई और 1 मई से यह मजदूर दिवस मनाया जाने लगा ।

आज के लिए इतना ही। अब मैं विदा लेता हूँ। फिर मिलूंगा एक नए किस्से के साथ ।

आपका अपना
रजनीश जस
रूद्रपुर
उत्तराखंड
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03.05.2020