Sunday, March 29, 2020

किस्से मेरे गाँव पुरहीराँ(होशियारपुर, पंजाब) के

 21 दिन लाकडाऊन, मतलब हमारे पास 21 दिन हैं, खुद को समझने में, दूसरों को समझने में।

सुना है कि कोई काम हम 21 दिन लगातार करते हैं तो वो हमारी आदत बन जाती है। तो अच्छे काम करें 21 दिन तक ,जो आगे के चल कर वो आदत बनें और हमारी जिंदगी में आनंद, उत्सव और शांति पैदा हो सके। क्योंकि विश्व की शांति एक आदमी के शांत मन से शुरू होती है। अगर एक आदमी का मन शांति , प्रेम से भरा हो तो दूसरे लोग शांत होंगे तो विश्व में करूणा और शांति बढेगी।

 पर इसके साथ शर्त ये भी है घर पर ही रहें।

 मुझे याद आ रहा था मेरे पास जब नौकरी नहीं थी। मैं सुबह देरी से उठता था, तब तक पिता जी सैर करके वापिस आ जाते हैं।
पिता जी, हर रोज़ डाँटते, सुबह उठकर सैर कर लिया करो।
मेरा एक दोस्त था बिट्टु अब गैरी काहलों ( नाम तो उसका गुरमेल सिंह है, गैरी काहलों ,कनाडा में नाम मोडिफाई हो गया है) और मैं , दोनों बिना नौकरी के थे।
मैनें कहा, यार सुबह-सुबह बापू की डाँट बहुत पड़ती है,  कि तुम सैर नहीं करते हो?
 तो उसने यह कहा, ये इसलिए नहीं पड़ती है कि तुम  देरी से उठते हो, बल्कि ये इसलिए है कि तुम नौकरी नहीं कर रहे हो। अगर तुम नौकरी करो, तो संडे को जितने चाहे मेरी मर्जी देरी से उठो।
तब जाकर खोपडी में बात घुसी।


फिर  हम दोनों ने मिलकर डिस्ट्रिक्ट लाइब्रेरी का पास बनवा लिया । वहां से किताब लाकर पढ़ने लगे।लाइब्रेरी  किताबें लाकर पढ़ते तो  समय का सदुपयोग होने लगा।

मुझे एक हँसी वाला किस्सा भी याद आ रहा है। उन दिनों नया नया इंटरनेट शुरु हुआ था।  ₹20,  एक घंटे के लगते थे। गांव में गर्मी होती तो हमने  ₹20 दोनों ने डालने और 40 हो जाते। स्कूटर पर  पुरहीराँ , गाँव से होशियारपुर  जाकर 2 घंटे एसी में  बैठ कर  इंटरनेट पर चैटिंग करते। उन दिनों में Yahoo Mesaanger पर लोग चैटिंग करते थे।  लड़के की आई डी देख कर हमसे  कोई चैटिंग नहीं कर रहा था। तो हम परेशान हो गये।
एक  खुराफाती आईडिया दिमाग में आया। हमने एक लड़की के नाम से आईडी  बनाई। तो तुरंत लड़कों के कमेंट आने शुरू हो गए,
 हाय बेबी,
 हाउ आर यू
 हाउ क्यूटी

सब ने भी खूब मजे लिए।

 तभी तो मैं वह स्त्री दिवस पर यह जरूर लिखता हूं उन लड़कों को भी स्त्री दिवस की बधाई जो लड़की की आई डी बनाकर फेसबुक और ट्विटर पर लड़कों का मन बहलाते हैं।😁😁😁

 बिट्टू के साथ मेरे बहुत सारे किस्से हैं। हम दोनों ओशो पढ़ने लगे थे । तो पता चला कि हिमालय से  दो हठयोगी होशियारपुर में आए हुए हैं। हम  स्कूटर लेकर वँहा पहुंच गए । उन से बातें करने लगे । उनके  लंबे लंबे बाल, उन्होनें जोगिया रंग के कपड़े पहने हुए थे। बातों बातों में शायद मैंने ओशो का जिक्र कर दिया। बस पूछो मत वैसे भड़क गए। मैंने बिट्टू की तरफ देख कर इशारा किया,  भैया भाग ले यहां से नहीं तो बहुत पिटने वाले हैं। उन्होनें तर्क से बात करने की बजाय उन्होनें क्रोध का साथ देना उचित समझा और हमने उचित यही समझा के यहां से भाग चलो। तो हम दोनों वँहा से  भाग लिए।😁😁😁

 हमारे गांव में एक और लड़का है बिंदा वो आजकल  इंग्लैंड में है। मैं और मेरा दोस्त रिंकू जो कि इटली है ( उससे मेरी बात हुई है, वो घर पर है,सुरक्षित है। भगवान से उसकी ओर पूरे विश्व की अच्छी सेहत की दुआ करता हूँ) , तो  रिंकू ने जिम करना शुरू किया। मैं जब पहले दिन गया तो बिंदा मेरी तरफ देख कर बोला, कि तुम भी वेट लिफ्टिंग करो। अब आप सोचो, एक लड़का जिसकी कमर 29 इंच की हो, जिसे पतला होने के कारण बहुत बार मजाक बनना पड़ रहा हो, वो ओर मजाक का पात्र नहीं बनना चाहता था ।

मैंने कहा, मुझको नहीं आता है, तो उसने कहा पहले सिर्फ खाली 5 किलो ही करो। फिर उसने एक रोड में वेट डाला और मैनें उठाया। बिंदा पीछे खड़ा हो गया। मैं डर रहा था, पर उसने मुझे हौंसला दिया। बस फिर तो, ऐसा हुआ कि सुबह शाम 3 महीने हमने जिम ही किया।
ऐसा जुनून छा गया था कि एक बार बिजली नहीं थी, तो हमने मोमबत्ती की रोशनी में जिम किया।
 मेरा चेहरे का अलग ही रौब आ गया था। मैं खड़ा-खड़ा ही 1 किलो दूध पी जाता था, पर उन दिनों में हमने समोसा, मिठाई, चटनी कुछ भी नहीं खाया। इस सारे काम के लिए हमारे गांव का एक लड़का करतार था जो कि खुद तो जिम नहीं करता था पर उसने अपनी हवेली हमें दे रखी थी। उसने आकर बैठ जाना और कहना  करो करो, लड़कों  खूब मेहनत करो।  खूब बाडी बनाओ।
3 महीने बाद मेरी कमर 32 इंच हो गयी थी।

जिंदगी जीने के लिए बहुत ज्यादा सहूलतों की जरूरत नहीं होती,  जिंदगी हम जीते हैं अपने अंदाज से, अच्छे दोस्तों के साथ से।
 एक शेर है
 ले देकर अपने पास नज़र ही तो है
 क्यों देखें जिंदगी को, किसी ओर की नजरों से हम

 मुझे एक और किस्सा याद आ रहा है, कि रिंकू की दुकान के साथ वी सी आर की कैसेट दुकान होती थी। वह खुद तो नशेड़ी थाऔर  पर टिककर नहीं बैठता था । उसकी दुकान रिंकू और और उसके पिता जी देखते थे।
एक बार उसकी दुकान पर एक लड़का भागा भागा आया। वह बोला " अंकल , अंक्ल, प्यासी चुड़ैल चाहिए।
 रिंकू के पिताजी बहुत मजाक वाले थे, उन्होंने कहा,  बेटा प्यासी चुड़ैल तो नहीं है क्योंकि उसने पानी पी लिया है, अभी चुड़ैल ही है कहो तो ले जाओ।😁😁😁
 ऐसे ही कुछ और किससे लेकर आऊंगा।
 तब तक के लिए विदा लेता हूँ।
 आपका अपना
 रजनीश जस
 रूद्रपुर
 उत्तराखंड
29.03.2020
#sunday_diaries
#rudarpur_cycling_club



Thursday, March 26, 2020

Journey to Osho birth place Kuchwada, Madhya pardesh

आइए आपको आज लेकर चलते हैं ओशो की जन्म स्थान कुचवाड़ा, मध्य प्रदेश।
 ओशो का असली नाम रजनीश था।
वो अपने आप को भगवान कहलाते थे। लोगों ने विरोध किया तो उन्होनें कहा, तुम में भी भगवान है। ये भी एक इत्तेफाक है कि मेरा नाम भी रजनीश ही है। 😀😀

रजनीश का मतलब होता है रजनी +ईश ।
रजनी का मतलब रात,
और ईश का मतलब ,देवता,
रात का देवता चंद्रमा। फिर बाद में उन्होने अपना नाम ओशो रख लिया।
ओशो शब्द जापान से लिए एक शब्द के ऊपर है, जिसका मतलब है,  अत्यधिक गुणी भिक्षु।

बात लगभग 2009 जनवरी की है।  हमारी कंपनी का कंपोनेंट मंडीदीप,  मध्यप्रदेश में जाता था। पता चला एक कस्टमर कंप्लेंट आ गई और मुझे वहां पर भेजा गया।

उस वक्त मेरे मैनेजर ने टिकट तो बुक करवा दी थी तो उन्होंने मुझे सीट का नंबर बता दिया और बोले जाकर बैठ जाना। मैंने मैनेजर को बोला कि आप मुझ को टिकट का प्रिंट तो दे दो ,वो आनाकानी कर रहे था। मैंने कहा, मैं जाऊंगा ही नहीं, जब तक टिकट का प्रिंट नहीं दोगे। तब उसने टिकट का प्रिंट निकाल कर दिया।

 जनवरी के दिन थे मैं अपनी जैकेट वगैरह पहनकर चला ,मेरे साथ मेरा साथी रामनाथ था। हम सुबह अंबाला की स्टेशन पर पहुंच गए।
 चलो जी हम चल दिए मध्य प्रदेश की तरफ ट्रेन में । स्लीपर टिकट था और मैं साइड विंडो में बैठा हुआ था। बाहर देख रहा था । मैं पहली बार घर से इतनी दूर गया था।  इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जब मैं दिल्ली से अपनी मौसी के घर छोटे होते, बहादुरगढ़ गया था तो मैं सोच रहा था मुंबई यही बिल्कुल पास है । रास्ते में पेड़ , खेत खल्यान, पहाड़ देखता हुआ जा रहा था।

भोपाल पहुंचा।  वहां से एक मिन्नी बस चली और फिर हम मंडीदीप पहुंच गए। मंडीदीप एक इंडस्ट्रियल एरिया है।  वहां पर घूम फिर कर एक होटल का कमरा बुक किया। फर्सट फ्लोर  पर हमारा कमरा था। पहले दिन हमने होटल से खाना खाया और सो गये। सुबह उठे तो नहा धोकर फिर पास में ही है रेस्टोरेंट पर गए । उसका मालिक बहुत बातूनी था , उसने हमें साउथ इंडियन खाना खिलाया। हमने इडली खाई। उसकी दुकान भी फूस छप्पर  ही थी, ऊपर कच्ची छत्त नीचे  कच्ची मिट्टी। खाना खाने के बाद हम फिर फैक्ट्री पहुंच गए ।वहां पर अपना काम-वाम निपटाया ।
 उस फैक्ट्री में  एक लड़का धीरज मनोट नाम का था। वो पीपीसी  में था। एक दिन उसकी तबीयत थोड़ी खराब थी। थोडा बुखार और जुकाम था। मैनें कहा आओ मैं तुम्हारा अक्युप्रैशर कर देता हूँ। वहां पर कुछ पाइप लगे हुए थे,  वो उस पर बैठ गया। मैंने जैसे ही उसकी सिर के  पॉइंट का अक्युप्रैशर किया,  वह गिर गया। मैं घबरा गया पर वो तुरंत उठा और बोला, तुम्हारे हाथों में तो जादू है। मैं एकदम से ठीक हो गया हूँ।
 मैंने कहा, मैं तो घबरा गया था कि तुम पता नहीं क्या हुआ है?
 तब मैंने सोचा कि आगे से अगर कभी किसी आदमी का अक्युप्रैशर  करना हुआ तो कुर्सी पर बिठा कर आराम से ही करूंगा।

 मैनें  वँहा लोगों से बातचीत की कि पंजाब मे इन दिनों पूरी सर्दी है। उन्होंने कहा कि शुक्र करो कि आप जनवरी में आए हुए हो, अगर आप मई- जून में आते तो शायद यहां पर आपको ठंडा पानी पीने के लिए तरस जाते और बहुत ही ज्यादा गर्मी होती ।वहां पर गर्मी होने का कारण ये भी है कि  वहां से भूमध्य रेखा निकलती है और सूरज की  किरणें सीधी पड़ती हैं।

ऐसे ही तीन-चार दिन बीते और रविवार आने को हो गया। मैंने पता किया कि कुचवाड़ा यहां से कितनी दूर है? क्योंकि कुचवाड़ा ओशो की जन्म स्थल है। होटल के मालिक ने बताया कि लगभग 100 किलोमीटर है। हम रविवार को सुबह उठे 6:00 बजे और हमने लगभग होटल से 7:00 बजे निकल गए। पता चला है कि कुचवाड़ा के लिए जो बस चलती है वहां पर पहुंचे तो पता चला कि बस अभी थोड़ी देर हुई है निकली है।  दो लड़के वहां मोटरसाइकिल पर थे और उन्होंने कहा आप हमारे मोटरसाइकिल पर बैठ जाएँ हम आपको बस तक छोड़ देते हैं। हम लोग उनके मोटरसाइकिल पर बैठ गए और उन्होंने मोटरसाइकिल दौड़ाई। उन्होनें मोबाइल पर बस वाले को रोक दिया था। आगे हम बस में बैठ गये।
ये लड़के शायद बस वाले से कुछ कमिशन ले लेंगे।
  हम बस से देखते हुए जा रहे थे। 3- 4 घंटे के बाद बस ने हमें मेन रोड  पर उतार दिया। वहां से कुचवाड़ा कोई 5 या 6 किलोमीटर था। फिर वहां पर पैदल चल दिए। इर्द-गिर्द चने के खेत थे।हम  चने तोड़ते खाते हुए चलते रहे ।
कुछ नहीं मिला तो देखा वहां पर एक ट्रैक्टर आ रहा था। हम लोग ट्रैक्टर पर बैठ गये । फिर हम कुचवाड़ा पहुंच गए। ओशो के घर बारे में पता किया कि उनका जन्म स्थान कहां है? कच्ची सड़क थी।थोड़ा चलने के बाद देखा तो किसी ने बताया कि वो सामने की झोंपडी ही ओशो का जन्म स्थान है। मैं वँहा जाकर बैठ गया और  आंखें बंद कर ली और इस जगह को महसूस करने लगा। क्योकिं यँहा पर इस सदी के एक महान सदगुरू का जन्म हुआ, उनकी कुछ तरंगें हवा में तो मौजूद होंगी। As One Sientist , Julius Robert Mayer said, Energy can neither be created nor be destroyed, but one form of energy can be converted to another.
तो मुझे यकीन था वो किसी ना किसी ओर रूप में यँहा होंगें।

वँहा से दो छोटे छोटे पत्थर उठाये और अपने पास रख लिए,एक याद के तौर पर। सामने ही कच्चे  पीछे वह तालाब था जिसमें ओशो खेलते थे।
वो बचपन में बहुत शरारती थे। ओशो की किताब " मेरा स्वर्निम बचपन", उनके बचपन की शरारतों से भरपूर है।

 यहां पर यह बताना जरूरी है कि ओशो अपनी नानी के पास इसी घर में रहे। अभी कुछ समय पहले ओशो की जिंदगी पर एक हिंदी फिल्म भी बनी है, Rebellious Flower। फिल्म में इसी जगह की कहानी है।
 Osho Birth Place( Shared from Google)
उसके बाद वह जबलपुर में फिलास्फी की प्रोफ़ेसर रहे। फिर उन्होंने पूरा भारत घूमा। उसके बाद फिर वह अमेरिका चले गये। उनके इर्द गिर्द दुनिया के मशहूर डाक्टर,प्रोफेसर, चिंतक, कलाकार इक्ट्ठे होने लगे।
अमेरिका में 1981 -88 ओरेगन में कई एकड़ बंजर जगह को हरे भरे उपवन में बदल दिया। वहां पर लोग ध्यान करने लगे थे,  ये बात अमेरिका  नाकाबिले बर्दाश्त थी । ओशो को शुक्रवार को गिरफ्तार किया,  शनिवार रविवार को कोर्ट बंद थी। सोमवार को पूरे विश्व में चर्चा हुई और फिर उनको  ओशो को रिहा करना पड़ा क्योंकि उसको के खिलाफ उनके पास कोई सबूत नहीं था।वो फिर विश्व भर में घूमे। फिर वो नेपाल से होते हुए मुंबई में आए। फिर उन्होंने अपना आश्रम पुणे में बनाया। पुरातन भारत की और इस युग के मनोविषलेश्क सिगमंड  फ्रायड , कार्ल गुस्ताख़ जुंग की सोच को लेकर ध्यान की विधियाँ बनाईं कि आधुनिक मनुष्य घर में रहकर सन्यास की यात्रा कर सकें।
उन्होनें कहा, संसार से भागो मत, बल्कि जागो।
शायद गोरखनाथ ने कहा है, हँसिबा खेलिबा, करिबा ध्यानम।
इस युग की शानदार खोज , डायनामिक मेडिटेशन है, जिसमें आदमी के मन में दबी हुई भावनाओं को बाहर निकालकर , उसे सहज बनाने के मार्ग पर अग्रसर किया।
आज तक दुनिया भर में जितने भी बुद्धपुरूष हुए हैं , जैसे जीसस, मीरांबाई, सुकरात, जरातुस्त्रा, महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव जी, लाओत्से, महांवीर,जे क्रष्णामूर्ती ....बहुत लंबी कडी है , उन सभी की शिक्षा को बहुत सरल ढंग से दुनिया के आगे रखा।
                             Osho

 ओशो की जब मृत्यु हुई तो उन्होनें पहले ही कह दिया था कि मेरे को रोते हुए  विदा मत करना। मैंने जो भी चाहा वो किया है, तो मुझे नाचते गाते हुए ही इस संसार से विदा करना।तो ऐसा ही हुआ उनके पार्थिव शरीर को नाचते गाते हुए सन्यासी लेकर गए।वो तमाम उम्र बहुत सारी चीजों के लिए विवाद में रहे , जैसे कि उनकी एक किताब थी संभोग से समाधि की ओर, फिर से रोल्स रॉयस कारों के लिए।

मेरे पिता गुरबख्श जस ने ओशो के साहित्य को पंजाबी में अनुवाद किया। इस काम के लिए ओशो से written permission ली थी।

आईए मुड़ते हैं यात्रा पर,
तभी मेरे  दोस्त का कनाडा से फोन आ गया। मैं बात करने लगा। मैंने उसे बताया कि मैं ओशो की जन्म स्थान के बाहर बैठा हूँ। दोस्त ने कहा कि मेरी तरफ से भी नमन कर देना। फिर हम ओशो का आश्रम की तरफ चल दिए।  वहां पर ₹5 की टिकट टिकट खरीद के अंदर गये। मैंने पूछा ऐसा क्यों? तो  उन्होंने बताया कि गाँव के लोग परेशान करते थे, अंदर आकर फूल तोड़ लेते थे। इसलिए हमने  टिकट रख दी। हम अंदर गये तो देखा, वँहा बहुत फूल खिले हुए थे। वैसे भी जनवरी का महीना फूलों का ही होता है। गाँव में पैदल घूमते रहे ।  हम मेन रोड पर आ गये। वहां पर एक ढाबे पर  रोटी खाई और फिर बस पकड़कर शाम को 7:00 बजे अपने होटल के कमरे में आ गए। मैं वहां जितने भी दिन रहा उस होटल वाले ने अलग अलग साऊथ इंडियन खाना खिलाया। जिस दिन मेरी वापसी थी तो उसने मुझे मुफ्त में खाना खिलाया।

 फिर मिलूंगा एक नयी यात्रा के साथ। तब तक के लिए विदा लेता हूँ।
 आपका अपना
 रजनीश जस
रुद्रपुर
उत्तराखंड
26.03.2020
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